Madhu varma

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लेखनी कहानी -मनहूस दिन -ललित का भयानक प्रेत

ललित का भयानक प्रेत


मेरा नाम हिरल महेता है और मेँ सूरत का रहने वाला हूँ। जी॰ एस॰ रोड पर हमारी किराने की बड़ी दुकान है। आज मुझे हमारी दुकान पर काम करने वाले ललित के बारे में बात करनी है। ललित वैसे तो एक महेनती लड़का था, पर शायद उसे कुछ दिमागी तकलीफ थी। उसे गुस्सा काफी जल्दी आ जाता था, और वह थोड़ा मुह-फट भी था। गरीब घर का लड़का समझ कर हम उसे काम तो दे दिया, पर हमे मालूम नहीं था की येही हमारी सब से बड़ी गलती साबित होगी। आज ललित तो इस दुनिया में नहीं है पर ललित का खौफनाक प्रेत दुकान पर दिन रात मंडराता रहता है।

एक साल पहले एक दुखियारी औरत हमारी दुकान पर आई, उसने हाथ जौड कर कहा की मेरे बेटे के लिए कुछ काम ढूंढ के दीजिये। मेरे पापा नें फौरन उन्हे कहा की आप के बेटे को कल से यही काम पर भेज दीजिये। इस तरह ललित को जाने बिना ही काम पर तो रख लिया पर धीरे धीरे ललित का गुस्सैल स्वभाव सामनें आने लगा, तब ललित हमारे लिए मुसीबत बन गया।

पापा नें उसे कई बार समझाया पर उस लड़के पर कोई असर नहीं हुआ। एक दिन ललित हमारे पुराने ग्राहक से जगड़ पड़ा और वह ग्राहक बिना सामान लिए दुकान से चला गया। मेरे पापा को और मुझे काफी गुस्सा आया। चूँकि अब ललित की वजह से हमारा बिज़नस खराब हो रहा था।

मैंने और पापा नें उसे खूब डांट कर घर चले जाने को कहा। और उसे यह भी बोल दिया की तुम कहीं और काम ढूंढ लो। ललित गुस्से में तिलमिलाता हुआ अपनी साइकील ले कर घर की और चला गया। हम भी अपने काम में झुट गए। तभी अचानक ललित फिर से दुकान के सामने आ धमका। ललित के सिर से खून बेह रहा था, तो हमे चिंता हुई, हम फौरन उसके पास दौड़ गए। और उसे पूछने लगे की क्या हुआ? ललित कुछ बोल नहीं रहा था।

हम भी टेन्सन में आ गए की क्या करें। पापा नें मुझे दवाई लानें मेडिकल स्टोर भेजा। ताकि उसकी मरहम पट्टी की जा सके। अभी में दवाई ले कर आया ही था की, मेरे पापा के फोन की घंटी बझी, पापा नें फोन उठाया और बात की, फोन पर कोई पुलिस ऑफिसर था।

उस पुलिस वाले नें कहा की आप की दुकान पर कोई ललित नाम का लड़का काम करता था? पापा नें फौरन हाँ कहा, उसके बाद उस पुलिस वाले नें यह कहा की आप जल्दी से मैन रोड पर आ जाइए। उस लड़के का accident हो चुका है और घटना स्थल पर ही उसकी मौत हो गयी है। यह बात सुन कर मेरे पापा के तो पसीने छूट गए। मैंने पूछा की क्या हुआ? तो पापा नें कहा की ललित तो मर चुका है,,,, हम दोनों नें मूड कर देखा तो पता चला की हमारी दुकान से ललित और उसकी साइकल गायब थे। यानि की जो अभी अभी हमारी दुकान पर आया था वह ललित का प्रेत था।

हम घटना स्थल पर गए तो हमनें देखा की ललित की साइकील ट्रक के पहिये के नीचे कुचली पड़ी थी। और ललित के सिर पर गहरी चौट आई थी जिसकी वजह से वहीं स्पॉट पर उसकी मौत हो चुकी थी। कई लोगों नें इस बात की पुष्टि भी कर दी। मेरे पापा नें ललित का अंतिम संस्कार करवाया। उसकी माँ को दो लाख रूपये भी दिये। और कभी कभी पापा ललित की माँ के घर किराने का सामान भी मुफ्त में भिजवा दिया करते हैं।

आज भी कई बार ललित का प्रेत हमारी दुकान में नज़र आता रहता है। कभी कभी दुकान के बाहर साइकील के साथ ललित खड़ा नज़र आता है। और हमारे कई ग्राहक को भी ललित डराता रहता है। शायद मरने के बाद भी ललित के गुस्सैल स्वभाव नें उसका पीछा नहीं छोड़ा है।

पापा कभी कभी कहते हैं की ललित को काम से नहीं निकाला होता तो शायद वह आज ज़िंदा होता। पर में पापा को सांत्वना दे कर समझता रहता हूँ की मौत और ग्राहक कभी भी आ सकते हैं उसे कोई टाल नहीं सकता। उसका समय पूरा होना था इसी लिए वह चला गया। वह एक accident था उसमें हमारा कोई दोष नहीं है।

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